दौरे-जहाँ में कदम-बोशी नहीं हासिल यूँही,
कि हर कदम पे निशाँ छोड़े जा रहा हूँ,
यह जो डगर है, इस पर चलेगा जहाँ इक दिन,
कहेगा कलबिया, चले-चलो मैं आगे जा रहा हूँ!
हासिल करू रूहानी मिलकियत कभी,
ख्वाहिश यही ले चला इस सफ़र पर,
कुछ साथ हो चला खुद-ब-खुद,
धुल भी माथे को सजाती चली!
चिलमची कि ख्वाहिश पूरी हो किसी कि,
कि हम जहाँ मे आये नहीं इस खातिर,
कदम उठ चले हैं मंजिल के सरमाया,
राह कभी तो अंजाम को हासिल होगी!
रगों में साँसे भरती हैं हौसला,
नजरों में कोई लौ सी जली है,
नब्ज थामो तो रगों में लहू थमता नहीं,
मैं तो समय हूँ, रोक सकोगे किस जानिब!
December 16, 2009
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