किसी संभ्रांत परिवार से ताल्लुक रखने वाला, कद-काठी से मजबूत यह युवक जिसे उसके मित्र जुगाडू भाई के नाम से जानते हैं, एक बहुत ही संवेदनशील इंसान है और यह मुझे कल ही पता चला...
जो तन बीते सो तन जानी... वाली कहावत पहली बार चरितार्थ होती नजर आयी| जुगाडू भाई अपने घर का अकेला ऐसा सपूत है जिसके कांधों पर जिम्मेदारियों का बोझा ठीक वैसे ही नजर आया, जैसे धोबी के गधे पे धुलने जाते या धुलकर आते कपड़ों का गट्ठर कभी नजर आता था, आजकल तो घर-घर बैठी कपडे धोने कि मशीन होने की वजह से ऐसे कर्मवीर गधों के दर्शन होना भी एक दुर्लभ स्थिति है.... जुगाडू भाई इस परिपेक्ष्य में सटीक बैठता था और मानूस रूपी इस गधे के दर्शन से जीवन कृतार्थ हो गया|
वैसे देखा जाए तो मित्रो के मुंह से जैसा सुना वैसा ही वर्णित करना इनकी अतिरेक बढाई करना होगा, किन्तु मैं यह जोखिम अपनी भाषा के अल्प ज्ञान की वजह से नहीं लेना चाहूँगा| पता चला इनको अपनी इस ढलती उम्र में किसी षोडशी से प्यार हो गया और यह महोदय अपने दिल को मार कर इन्ही षोडशी को घर के लिए परिमार्जित समय दे चुके हैं और अब इनकी जिम्मेदारियां अपना मुंह फाड़े खड़ी हैं और वह कन्या किसी अनकही कथा की भाँती ही किसी और नवयुवक को अपना दिल दे चुकी हैं! हाय रे किस्मत, क्या सच में किस्मत नाम की गुडिया होती है? मेरे इस बेवक़ूफ़ सवाल को अपना मुंहतोड़ जवाब मिल चूका था|
अपने जुगाडू भाई किसी फ़िल्मी मजनू की भाँती ही शराब का सहारा लिए इस कंपकंपाती ठण्ड को भी अपनी कद-काठी के विपरीत अपनी खटारा हो चुकी दुपहिया पे झेलते चले जा रहे हैं| दिल बहुत रोया और ऐसे ही कुछ प्रचलित से किसी फ़िल्मी गीत की भांति ही इनकी आँखें भर आती हैं| मुझे लगा की जुगाडू भाई को अपना कन्धा वहीं सौंप आऊं और राजधानी क्षेत्र में द्वारका की दूकान से अगली सुबह बरामद कर लूँ| मैं सुझाव दिया क्या आपने उस कन्या से बात की, ऐसा अंधेर क्यूँ हो गया? क्या कमी थी या फिर उसकी क्या इच्छाएं थी जो तुम पूरी नहीं कर सकते थे| मुझे तो जुगाडू ठीक-ठीक लगा, उसकी जेब महंगी शराब के एक अद्धे से महिमामंडित थी और वह मुझे पीने की पेशकश भी कर चूका था लेकिन इस दास्ताँ को सुनने का समय मेरे पास ना था, और मुझे भी किसी के सकुशल घर पहुँचने की खबर का इन्तजार था और आज तो ठण्ड भी कुछ ज्यादा थी, और हमारी दोस्त को जुकाम थोड़े जल्दी पकड़ लेता है, अब भाई फ़िक्र तो हो ही जाती है न| वैसे मुझे लगा की जुगाडू भाई की जिम्मेदारियों का निकट भविष्य में कोई अंत नहीं है और इतना समय उस कन्या के पास नहीं होगा, शायद यही कमी थी और इस कमी के चलते जुगाडू भाई आज चलते-फिरते धुआं भट्टी हो चुके है, दिल जल रहा है या सिगरेट सही-सही नहीं कह सकता..
चलिए अपनी दुनिया और अपनी कुछ काम की और कुछ फ़ालतू की जिम्मेदारियों का बोझा उठाये और अपनी मनपसंद क्लास्सिक रेग्युलर होंठों के बीच दबाये हम अपनी छोटी सी कोठरी की ओर अग्रसर हो चले|
January 11, 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)