October 21, 2008

चाय @ दिल्ली हाट!

१३ अक्टूबर, शाम के कोई सवा आठ बजे होंगे, और दिल्ली की एक ऐसी जगह जहाँ चहल-पहल रात दस बजे से पहले ख़त्म होने का नाम नहीं लेती, वहीँ एक कोने में एक ऐसी जगह है, जो बहुत ख़ास यार दोस्तों के अलावा प्रेमी युगलों की भी पसंदीदा होने के साथ ही दिल में एक अलग मुकाम रखती हैजगह ऐसी की पहली दफा दिल्ली घुमने आया हुआ इंसान भी इस जगह घूम कर आने और यहाँ की रौनक का दम भरता हैहर आमो-ख़ास की पसंद, कई सार्वजनिक नुमाइशों को अंजाम देने वाली इस जगह को आप, हम और भी कई चाहने वाले दिल्ली हाट के नाम से जानते हैंयहीं एक कोने में दो लड़के जिनकी उम्र कुछ १२ से १४ साल के बीच है, चाय की दूकान चलाते हैं और चाय भी कुछ ऐसी कि चाय के चाहने वाले लोग यहाँ पीपल और बड़ के पेडों कि छाँव में दिन भर कि थकान मिटाते नजर ही जाते हैं, यहीं किनारे बैठ कर बोध होता है कि सारनाथ में बोधी वृक्ष के नीचे ध्यान मग्न भगवान् बुद्ध को आत्म संज्ञान क्यूँकर प्राप्त हुआ था

यहाँ की चाय के क्या कहने! यहीं फुर्सत के क्षणों में सार्वजनिक स्थलों में वर्जित धुम्रपान को लागू कराने को कटिबद्ध, कानूनी तौर पर नियुक्त चंद पुलिस वाले भी धूम्र दंडिका का चोरी-छुपे लुत्फ़ उठाते नज़र आते हैंआज सेठजी, श्याम सुंदर और मैं बड़े दिन के बाद एक साथ इकट्ठे हुए थेचाय के साथ सिगरेट और दोस्तों का साथ हो तो शाम तो खासी बेहतर गुजरनी ही थी, उसपर जब मस्तमौला श्याम और उसके सिगरेट जलाने के अंदाज (जोकि अब तक दूर दूर तक मशहूर हो चुके हैं) और हम दोस्तों की गप्पें, बस एक हसीं शाम की सारी तैयारी हो चुकी थी, देर थी तो बस छोटू(हर ढाबे पे मशहूर नाम, असली नाम? मैं भी कोई अपवाद नही!) के द्वारा चाय के प्रस्तुत होने कि, और लो चाय भी ही गई, हमारे अक्सर आते-जाते रहने की वजह से हमारे लिए ख़ास तौर पे नए सिरे से चाय बनके गई थी और अदरक एवं इलाइची की खुसबू मन महकाए दे रही थीबहरहाल, चाय हो और आदमी किसी मुद्दे की चर्चा छेड़े, ऐसा हो नही सकताबस फिर क्या था! चाय और सिगरेट के दौर शुरू हुए और शुरू हुई बातें, जो एक मुद्दे से निकल कर दुसरे और दुसरे से निकल कर तीसरे मुद्दे में कब चली गई, पता ही नही चलाशेयर बाजार, रियल इस्टेट, सट्टा बाजार, बॉर्डर-गावस्कर ट्राफी, मनमोहन सिंह जी, आर बी आई के गवर्नर डी सुब्बाराव, हाल ही मैं रिलीज़ एक फ़िल्म हमारी चर्चाओं के केन्द्र में थे

कहते हैं आदमी का मन किसी एक काम में नही लगता, अब चर्चा ख़त्म होने को आई थी और हम सभी अपने-अपने ठिकानो की और अग्रसर होने को तत्पर थे, बात आई चाय के पैसे देने की और चंद रेजगारी जमा करते हुए हमने रुपये इकट्ठे कर के छोटू को बुला कर पैसे चुकाए और अपने घरों को निकलने की तैयारी कर ही रहे थे, कि सेठजी ने अपनी आदत्नुसार एक भद्दी सी गाली लेकिन अपने चिरंजीवी अंदाज में मेरे और श्याम के सामने परोस डाली और हमने भी इस व्यंगबाण को सहर्ष ही स्वीकार कर लिया, चट्टान पे सिर नही फोड़ा जाता, हमने कहीं सुना थामेरी और श्याम कि नजरों का आंखों ही आंखों में मुस्कुराना बहुत था, और यह बात सेठजी से भी छुपी थी

यहाँ कि चाय और यहाँ का माहौल दोनों एक दुसरे के पूरक हैं, सांझ ढले इन वृक्षों तले यहाँ कि चाय एक लाजवाब अनुभव है, और इस अनुभव के बगैर दिल्ली में रहना, विनोदमय जीवन में कुछ रिक्तता सी महसूस करने के समान हैयहाँ कि चाय को अनमोल अनुभव में तब्दील करने का श्रेय जाता है, छोटू और उसके द्वारा भोलेपन से बताने को कि आपके कुल रुपये हुए हैं, रुपये प्रति चाय के हिसाब सेबहुत सरल सा गणित है, या यूँ कहें कि जिंदगी का गणित ही तो है, ठीक जीवन पूरक तीन भिन्न आवश्यकताओं के समान- रोटी, कपड़ा और मकान, तीन ही तो मूलभूत आवश्यकताएं हैं जो कि हर इंसान को चाहिए, एक सरल, सम्मानित जीवन जीने हेतुजीवन कि तीन मूलभूत आवश्यकताएं और तीन रुपये कि चाय - जिंदगी का गणित, बुद्ध का आत्म परिचय और आज कि तेज रफ़्तार जिंदगी में कुछ क्षण जिंदगी कि मूलभूत आवश्यकताओं कि ओर बरबस ही ध्यान खींच जाना, बहुत कुछ समानता का एहसास कराता है दिल्ली हाट के इस शांत कोने और सारनाथ के बोधी वृक्ष के बीच

एक अनमोल अनुभव है, सचमुच! यहाँ पे आना और कुछ पल यहाँ बिताना एवं छोटू के हाथ कि चाय पीनाएक लाजवाब एहसास है वाकई में, चाय @ दिल्ली हाट!

3 comments:

  1. तारा जी, वोद्धिसत्व और पीपल की बड़ी ही हल्की समानता उतार दी आपने, साथ ही आपका अंदाजे बयां अच्छा लगा। लगे रहो, स्वागत है आपका हिंदी चिट्ठा जगत में.................... अरे वर्ड वेरिफिकेशन हटा दो यार

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  2. [B][BLUE]great...!!!! each word u used to describe this little occurrence make it superb ...overall nice one once again[/BLUE][/B]

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