एक सुंदरी के गुजरते ही राजधानी क्षेत्र में हलचल न मचे ऐसा कैसे हो सकता है? भाई अब उम्र ही कुछ ऐसी है की दो-तीन साल में सीलिंग पार हो जायेंगे! मतलब छाडे-छाँट या खुल्ले सांड, और तब मोहल्ले की नवयौवनाएं हमारी बेबसी का खुलेआम कचूमर करती इठलाती हुई निकल जायेंगी और हम एक ठंडी साँस भर रह जायेंगे|
हमारी टोली के गणमान्य सदस्य जो अक्सर सिगरेट के धुएँ में छुपे रहते हैं, ऐसे मौकों पर ख़ुद-ब-ख़ुद उड़ते सफ़ेद धुएँ को मौके से ऐसे हवा कर देते हैं, जैसे उसका अस्तित्व कभी रहा ही न हो| इठलाती-बलखाती, एक हाथ से अपनी लटें संवारती और दुसरे हाथ से हवा में लहरें बनाती इस युवती की सभी अपनी-अपनी स्वप्नपरियों से तुलना करते हैं और निष्कर्ष के तौर पे, एक से लेकर दस तक अंक देना शुरू कर देते हैं| अंकतालिका में सात से ज्यादा अंक पाने वाली युवती को सभी एकमत होकर हर रोज बनने और बढती रहने वाली स्वप्न्सुन्दारियों की फेहरिस्त में शामिल कर लेते हैं|
यूँ ही राजधानी क्षेत्र में पाये जाने वाली हमारी टोली का दर्शन भी भाग्यवान लोगों या यूँ कहें की भागमतियों को ही हो पाता है| इस टोली के मुखिया हैं, कल्लू और उनके दर्शन का क्या कहना? बस उनकी बोली को आकाशवाणी माना जा सकता है, ख़ासकर रूप-बालाओं को लेकर| इन हजरत के बगैर शायद ही इस टोली का कोई अस्तित्व होता, हमारी टोली के अन्नदाता के तौर पर मशहूर और सच भी तो है यह! हमारी, शराबी और राजपूत की त्रिमूर्ति को परम ब्रह्म का रूप प्रदान करती अन्ना की मौजूदगी और उसमे प्राण फूंकती कल्लू की मुस्कान और तिरछी नजरें एक ऐसे दर्शन-शास्त्र को जीवंत-स्वरुप प्रदान करती है जिसको समझना बहुत टेडी खीर है| बातें ऐसी-ऐसी की बस हसी-ठहाकों से गुलजार हो जाता है राजधानी क्षेत्र| एक टीस मन में ही रह जाती है बस इन बातों का सफर यूँही दबा-छुपा न रह जाए, लेकिन आज की तारीख में सहनशील श्रवन कुमार कहाँ मिलते हैं? बस यही सोचता हूँ कि कौन कहे और कासे कहें!
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बड़ा भिंचा भिंचा लिखा, कहना कुछ चाहते थे लेकिन कह कुछ और गए। जिस्ट तो पहले पैराग्राफ ही में छोड़ दी। हास्य किसी पर भी आधारित हो सकता है। लफ्फाजी तुष्टिकरण का माध्यम है तो क्या बुरा है? लेकिन कहो किसी को दर्द किसी को। रिश्ता मजबूत हो गया है। अगर है तो फिर मेरे दोस्त हमसे कहने में कैसी शर्म। उसके लिए नज़रे बदल लेगी टोली।
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