क्या कहें कि हर सुबह एक रात के बाद आती है, और हर सुबह से पहले एक रात होती है| आज कि सुबह कुछ ऐसी है, जो बस हमेशा याद रहेगी.... आज का सूरज एक नयी रौशनी लेकर आया और बस जिंदगी बदल गयी! मासूम दिल और नम आँखें और मेरा आइना गवाह रहेंगे मेरी उस मुस्कान का जो गयी रात उकेरे गए सपनो को अपनी गोद में लेकर हमेशा के लिए जा चुकी रात और उनको सुबह विदा करती मेरी उम्मीदों का हासिल थी|
कुछ अपने से और कुछ पराये से खुले बिस्कुट नमी खा चुके थे और आज सुबह कि पहली चाय में घुल रहे थे कुछ इस कदर कि वो चाय के साथ एकसार होकर ही दांत पार करना चाहते थे.... विस्तार कुछ ज्यादा न हो जाए और मैं कहीं और से शुरुआत कर के बीत चुकी निशा को डैने न दे पाऊं तो मेरी इच्छाशक्ति बेकार-बेरोजगार साबित होगी|
सुबह अपनी छोटी सी कोठरी और मेरी नन्ही दुनिया से आपकी जा चुकी महक को मैं आज आपकी आखिरी निशानी के साथ तिलांजलि दे देना चाहता हूँ| कभी इतना कठोर हृदयी न था मैं, लेकिन तुम्हारी हर अदा जो मेरी हमदम थी कल रात, मुझसे बिलकुल सटी हुई तुम्हारी काया शुरूआती शिशिर को मुझसे दूर किये हुए थी| अच्छा ही हुआ कि गयी रात के साथ तुम भी चली गयी, तुम्हारे होंठों से मिले होंठ और उन चुम्बनों की तपिश मुझे झुलसा चुकी सी मालूम होती है| शायद ठीक ही हुआ की तुम रात के अँधेरे में ठीक वैसे ही चली गयी, जैसे अमावास का चाँद गूम सा हो जाता है! मुझे आने वाली पूनम की रात का इन्तेजार इस कदर कभी न था! आज की सुबह एक नया हौंसला मिला और कुछ कर गुजरने की चाहत भी, जो मेरे भीतर ही कहीं दबी-छिपी सी हो और शायद तुम्हारे जाने का इन्तेजार कर रही थी, अब अंकुरित होने लगी है और सूरजमुखी के फूल की भाँती ही रौशनी के पीछा करने लगी थी| नर्म और गुनगुनी इस धुप का एहसास कुछ ऐसा था जैसे किसी डूबते नाविक को कहीं दूर जमीन के दिख जाने पर होता हो| तुम्हारे जाने का एहसास इतना हसीं होगा मुझे मालूम न था, काश तुम कुछ समय पहले चली गयी होती और मैंने खुद के हौंसलों को इतने करीब से पहले ही जान लिया होता|
एक कहावत है, देर आये दुरुस्त आये! चलिए इस सुबह का लुत्फ़ उठा लें और इस नयी उर्जा को एक अकथनीय आलौकिक रूप देने की शुरुआत कर लें| पिछली रात तुम्हारा जाना और हम बदल गए और बस बदल गयी जिन्दगी!
कुछ अपने से और कुछ पराये से खुले बिस्कुट नमी खा चुके थे और आज सुबह कि पहली चाय में घुल रहे थे कुछ इस कदर कि वो चाय के साथ एकसार होकर ही दांत पार करना चाहते थे.... विस्तार कुछ ज्यादा न हो जाए और मैं कहीं और से शुरुआत कर के बीत चुकी निशा को डैने न दे पाऊं तो मेरी इच्छाशक्ति बेकार-बेरोजगार साबित होगी|
सुबह अपनी छोटी सी कोठरी और मेरी नन्ही दुनिया से आपकी जा चुकी महक को मैं आज आपकी आखिरी निशानी के साथ तिलांजलि दे देना चाहता हूँ| कभी इतना कठोर हृदयी न था मैं, लेकिन तुम्हारी हर अदा जो मेरी हमदम थी कल रात, मुझसे बिलकुल सटी हुई तुम्हारी काया शुरूआती शिशिर को मुझसे दूर किये हुए थी| अच्छा ही हुआ कि गयी रात के साथ तुम भी चली गयी, तुम्हारे होंठों से मिले होंठ और उन चुम्बनों की तपिश मुझे झुलसा चुकी सी मालूम होती है| शायद ठीक ही हुआ की तुम रात के अँधेरे में ठीक वैसे ही चली गयी, जैसे अमावास का चाँद गूम सा हो जाता है! मुझे आने वाली पूनम की रात का इन्तेजार इस कदर कभी न था! आज की सुबह एक नया हौंसला मिला और कुछ कर गुजरने की चाहत भी, जो मेरे भीतर ही कहीं दबी-छिपी सी हो और शायद तुम्हारे जाने का इन्तेजार कर रही थी, अब अंकुरित होने लगी है और सूरजमुखी के फूल की भाँती ही रौशनी के पीछा करने लगी थी| नर्म और गुनगुनी इस धुप का एहसास कुछ ऐसा था जैसे किसी डूबते नाविक को कहीं दूर जमीन के दिख जाने पर होता हो| तुम्हारे जाने का एहसास इतना हसीं होगा मुझे मालूम न था, काश तुम कुछ समय पहले चली गयी होती और मैंने खुद के हौंसलों को इतने करीब से पहले ही जान लिया होता|
एक कहावत है, देर आये दुरुस्त आये! चलिए इस सुबह का लुत्फ़ उठा लें और इस नयी उर्जा को एक अकथनीय आलौकिक रूप देने की शुरुआत कर लें| पिछली रात तुम्हारा जाना और हम बदल गए और बस बदल गयी जिन्दगी!
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