रात के डेढ़ बजे, कंधे पे गमछा डाले गुसल खाने के बाहर नहाने कि तैयारी... पृष्ठभूमि में बजता मोबाइल पे एक अत्याधुनिक गाना जिसके बोल समझना, रात के इस पहर रमजान पांडे की समझ से बाहर था| बहरहाल गाना बज रहा था और वो सोच में था कि आज गुसल में किस नाजनीन को काल्पनिक मसाज के लिए आमंत्रित किया जाए... तीन बाय चार का गुसल रमजान पांडे के लिए किसी पंचसितारा स्पा केंद्र से कम नहीं, शरीर और मन का मेल दोनों इसी गुसल कि मोरी से जमींदोज जो हो जाता है| इनका तौलिया थोड़ा मटमैला हो चूका है, और इस बार कि सोमवार हाट से नया तौलिया लाने का मन बना चुके इस हाड़-मांस के पुतले को बेसब्री से इन्तेजार है सोमवार का|
सोने का समय हटा दें तो रमजान पांडे एक चालु मशीन कि भांति कार्यरत रहता है... और इस मशीन को फुर्सत मिलना साल में शायद ही कभी होता है और जब पहला साल पूरा होने को आता है, दुसरे साल कि कवायद शुरू हो जाती है|
रमजान पांडे का काम है, खाना बनाना और खाना खिलाना यानि कि 'महाराज' हैं, हमारे रमजान पांडे जी! लेकिन इनकी सबसे बड़ी खासियत है इनकी इमानदारी और इनका भोलापन... यह सभी कार्यों के लिए तत्पर रहते हैं लेकिन इसी वजह से हमेशा व्यस्त रहते है और सात बजते बजते यह भी ढल जाते है... कांच के बोतल भले आधी हो या पूरी इनकी पसंदीदा प्रेमिका है|
सुबह के सात बजते ही इनका मोबाइल मधुर स्वर में राग अलापना शुरू करता है और यह इंसान फिर मुस्तैद हो जाता है, सुबह कि चाय सबसे पहले यही काम इनकी जिम्मेदारी है, रात सोने का कोई समय तय नहीं लेकिन जागना सात बजे ही होता है! फिर दिन भर कभी यह काम तो कभी वो काम... अरे बनाने वाले ऐसा इंसान क्यूँ बनाते हो भाई, जिसकी आधी जिंदगी का सार केवल दिमाग थका देने वाली अभद्र बोलचाल से शुमार हो चूका हो! हैं एक चरित्र इनकी दुनिया में भी, मगर आज तरजीह इनको ही दी जायेगी, मंद-बुद्धि इनका एक सुप्रचलित नाम हो चूका है और अब कभी कभी यह थक भी जाते हैं, लेकिन जिम्मेदारी का बोझा इनको सतत कार्यरत रहने को प्रेरित करता है।
No comments:
Post a Comment