July 4, 2011

एक एहसान जो कभी उतार सको 'हम्द' तो कहना

एक एहसान जो कभी उतार सको 'हम्द' तो कहना,
अम्मी के आँचल का तुझपे पड़ती धुप को सहना,
वो नम आँखें जो तेरी खैर की मानिंद थी हर पल,
उन आँखों को सुखा देख तेरी आँखों का गीला होना,
एक एहसान जो कभी उतार सको 'हम्द' तो कहना!
वो तेरी ऊँगली पकड़ के तुझे दरवाजे तक लाना,
वो दो आने की मीठी गुडिया तेरी जिद पे दिला देना,
रस्मो-तीज पे तेरी पसंद से, कभी सेवईं कभी फिरनी बना लेना,
एक एहसान जो कभी उतार सको 'हम्द' तो कहना!
अब्बा को तेरी मर्जी के आगे लाख दफे. समझाना,
मेरा मुन्ना बनेगा राजा किसी रोज, कहके दिल को बहला लेना,
तुझसे दूरी से छितरे दिल को रोज फिर हरा बनाना,
एक एहसान जो कभी उतार सको 'हम्द' तो कहना!
उसकी हर नमाज में तेरे वास्ते दुआ करना,
खुदा का नूर बरसे तुझपे और खुदी का वास्ता देना,
उखड्ती हर सांस पे तुझे फिर याद करना,
एक एहसान जो कभी उतार सको 'हम्द' तो कहना!
बंद होती उस आँख का वास्ता तेरे चेहरे से था हर पल,
यह एहसान जो कभी उतार सको 'हम्द' तो कहना...
एक एहसान जो कभी उतार सको 'हम्द' तो कहना!

2 comments:

  1. Very beautiful poem dedicated to mother.

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    1. Jagdish Bali Ji, thanks for noticing. I wrote it for a friend who writes with the pen name of 'Humd'

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