July 7, 2013

दिल में मेरे है दर्दे-डिस्को... दर्दे-डिस्को, दर्दे-डिस्को...


दिल में मेरे है दर्दे-डिस्को... दर्दे-डिस्को, दर्दे-डिस्को...

नींद भगाने के लिए अलार्म की यह धुन ही काफी है, बाकी 'मलायका' का लहराना नींद को भगाने के लिए अब बहुत बड़ा तोड़ तो नहीं, परन्तु अब तक तो कारगर सिद्ध रहा है। आज तो बहुत पहले ही नींद खुल गयी और शरीर में दर्द रात का सबब कह रहा था... उमस भरी चिप-चिपी रात शरीर को कतई मरोड़ देती है बस... और पौ फटते-फटते आदमी चित्त! 

गुलज़ार के होटल की रोटियाँ चबाने के लिए भी जुगत लगानी पड़ी कल और यह तब जब एक कटोरा भर कर मूंग की दाल मयस्सर थी... समझ नहीं आता, कल काहे इतना खर्च कर दिये रहे, भोज तो था नहीं कोई... पर हाँ मन था, और अब खर्च हो गया तो हो गया!

यहाँ याद आती है, रानी की... उसका दिल लगाकर चूल्हे पर रोटियाँ बना कर गरमा-गर्म खिलाना और फिर प्यार से कहना, खा लो, दिन-रात इतनी हाड़-तोड़ मेहनत जो करते हो... उसका यह कहते-कहते पलकों को छिपाना और कनखी से देखना और फिर बस तुरंत ही एक रोटी की गुज़ारिश और कर, चूल्हे में ठीक तैयार रोटी, दिन में बिलोये मक्खन के साथ थाली में, किसी ना-नुकुर से पहले ही हाज़िर कर देना बस उसके ही बस की बात थी।

दिल करे ना करे डिस्को.. मन तो कर ही रहा होता था। तुम भी कुछ खा लो कहने पर वो कहती थी... खा लेंगे पहले दूध लगा दें चूल्हे पर, मंदा गर्म हो जाएगा रोटी खा चुकने तक। मैं बैठा एकटक उसको ही देखा करता, कोयलों पर दूध और सीने में दिल दोनों ही साथ-साथ तपिश को थामने की कोशिश करते से प्रतीत होते। उसकी आँख से कुछ भी छुपा ना था, तुरंत लोटा हटा देती कोयलों से और राख़ पर रख देती, दूध तो संभल ही गया था! रानी के रोटी खा कर चूल्हा-बर्तन निपटाने में यहीं कुछ समय लगता था और फिर एक आवाज आती थी, आ जाओ सो जाओ, फिर सुबह जल्दी जो उठ जाते हो... देसी गुड की एक डली और तांबे का दो हाथों में ना समाने वाले गिलास में दूध को जज्ब करना बाकी होता था... थोडा तुम भी पी लो कहने पर कहती थी, मैं कौन सा कमजोर हुई जा रही हूँ और फिर ढेर मनौती कर गुजरने पर अंत में थोडा सा दूध पी ही लेती थी, दूध भी कमाल की चीज है, गले से नीचे उतर कर भी उबलने को तैयार और फिर कुछ देर गल-बहियाँ और फिर... और फिर उसका कहना रात काफी हो गयी है, सो जाओ! बस, यही मानो आखिरी बात होती और फिर दोनों ही खर्च सी हो चुकी रात में पूरी आकाशगंगा में एक अकेले तारे को टटोलते से सो जाते...

क्या बात थी उन रातों में, आज मन केवल राग 'मुद्रा' पर नृत्य करता है... चलें अब कुछ समय में हमारे डिस्को का समय हो गया है, दफ्तर से गाड़ी आती ही होगी। और फिर हमारा फ़ोन बजने लगेगा... दिल में मेरे है दर्दे-डिस्को.... दर्दे-डिस्को, दर्दे-डिस्को