February 11, 2009

क्या सही और क्या ग़लत?

आज की तेज दौड़ती जिंदगी और इससे भी तेज दौड़ता मानव मन, हर समय क्या केवल यही नही सोचता है? कि अब और आगे( वस्तुपूरक मायनों में ) कैसे जाया जाए? इसी आपाधापी में कभी हम कुछ ऐसा कर गुजरते हैं, जो साधाराणतया आपसे जुड़े हुए लोगों कि नजर में ग़लत होता है! ऐसा नहीं है कि इंसान आगे नहीं सोचता कि उसने क्या किया था, जो उसको थोडा परेशान करता है और इसी परेशानी को सुलझाने में वो मुड़ता है कुछ ऐसे दायरों की ओर जहाँ, शराब को उससे जुड़ने में कोई दिक्कत पेश नही आती! ऐसा मेरा सोचना भी हो सकता है, लेकिन मुझसे जुड़े एक बहुत ख़ास ( जी हाँ, बहुत ख़ास मित्र ) को देख मुझे ऐसा ही लगता है!

आप सोच सकते हैं कि बगैर उसकी मनोस्थिति को समझे मैं ऐसा कैसे सोच सकता हूँ और मैं ग़लत हूँ! और मैं सोचता हूँ, कि मैं सही हूँ! यही सार है आज मेरे बहुत दिनों पश्चात् लिखने का कि क्या सही है? और क्या ग़लत है?

कुछ भी हो मुझे अच्छा नही लगता कि मेरा वो मित्र जिसमे मुझे बुद्धिपरक जुझारूपन दिखता था, वो जुझारूपन कहीं विलुप्त सा हो गया है! या यह भी हो सकता है कि शराब कि महफिलों से अपने तौर पर अलग हो जाने कि वजह से अब मुझे नहीं दिखता! क्या एक आम इंसान की तरह मेरा सोचना ग़लत है कि २९ वर्ष कि उम्र हो जाने पर भी मुझे ऐसी महफिलों से गाफ़िल नहीं होना चाहिए? किसी और शहर से आकर भी यदि हम अपना कोई मुकाम नहीं बना पाते तो क्या यह केवल हमारा दोष नहीं? क्या हर वक्त विलासिता कि चाह हमे किसी के दर पे ला खड़ा करे तो वो सही होगा या फिर हम ख़ुद में वो मुकाम बना लें, यह सही होगा! आप सोच सकते हैं मैं आपसे मुखातिब हूँ, जी हाँ यह राय आपके बारे में ही है! और मेरी ऐसी सोच पहले रोज से नहीं थी, सोच में थोडी परिपक्वता गई है! फिर आप सोचेंगे कि ऐसी सोच वाले लोग 'केवल माहौल ख़राब कर सकते हैं!', लेकिन मैं कहना चाहूँगा कि नहीं, आज मेरी स्तिथि उस प्रशिक्षक कि तरह है, जो खेल के मैदान में बाहर से आपका समर्थन कर सकता है लेकिन अन्दर से नहीं! एक बात और है जो परेशान करती है, लोग ऐसी छोटी छोटी जरूरतों को दोस्ती के मुखौटे में कितनी कामयाबी के साथ छुपा लेते हैं! आज के सन्दर्भ में और ऐसे दोस्तों से अपने हाल ही के पार्स्व्काल में जुड़े होने कि वजह से मुझे लगता है, कि दोस्ती सिर्फ़ 'टोपी पहनना भर है' अगर आपने किसी को टोपी पहनानी है तो उससे दोस्ती कर लीजिये! कुछ प्रश्न हैं?

केवल अपने लिए सोचना कहाँ तक सही है?
केवल यह सोचना कि मेरा काम तो बन जायेगा, अपना काम क्यूँ ख़राब करूँ?
दूसरा परेशानी में है, ख़ुद को कैसे बचाऊँ?
आज किसी को उसके कार्य के आधार पे वर्गीकृत करना कितना सही है?
इंसान होकर एक मशीन कि तरह सोचना कितना सही है?
आपसे कोई शिकायत हो और आपको संबोधित ना हो, यह कहाँ तक सही है?


प्रश्न् तो अन्यान्य और भी हैं, किंतु उपरोक्त प्रश्न् यदि आपके अंतर्मन को थोडा भी उद्वेलित करते हैं तो मुझे लगेगा की मेरा आज लिखना सफल हो गया! आज मैं सही सोचता हूँ या ग़लत, अब यह पूर्णतया आपके ऊपर है!

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