February 17, 2009

समय का अभाव


सोच और दूरियाँ बढती चली जाती है,
यह राह ही कुछ ऐसी है जिंदगी में,
तेरा भी मुकाम हासिल हो तुझे ए-दोस्त,
रात में कहीं दूर लौ टिमटिमाएगी जरुर!

अजब प्रेम की गजब कहानी! कभी राधा कहीं मीरा दीवानी! प्रेम की कोई भाषा नहीं होती ऐसा सुना था, आज लगता है की यह सच है, क्यूँ कर किसी के लिए बेवजह परेशान होते हैं आप जबकि अगले के पास आपको समझने के लिए समय ही नहीं! समय का अभाव - अच्छा तरीका है, लेकिन यदि गौर किया जाए तो समय सबके पास समान होता है, किसी के पास कम और किसी के पास ज्यादा नही! तो फिर ऐसा क्यूँ की समय का अभाव केवल चंद लोगों को ही होता है! प्रेम है, प्रेम को ही लीजिये, जो प्रेम में है उसके पास समय ही नही, अब समय का होना या न होना इस बात पर निर्भर करता है की आपको प्रेम किससे है? जीवन में यदि प्रेम बेकार की बातों में पड़कर, दो-चार लोगों को इकठ्ठा करके किसी अनुपस्थित व्यक्ति के बारे में अपने उदगार व्यक्त करने से है, तो अलग बात है क्यूंकि आपके पास कुछ समय बचता है और उसे आप व्यर्थ गवां देते हैं! अगर प्रेम हर उस वस्तु या व्यक्ति से है जो आपसे जुडा है तो आपके पास समय का न होना लाजिमी है, परन्तु आपको आवश्यकता है, अपने समय को आवश्यकता के अनुसार प्रयोग में लाने की! अब कल की ही बात लो, किसी दोस्त से अपनी समय की कमी जाहिर करी यह कह कर की, 'नौकरीपेशा हैं, कल सुबह ऑफिस भी जाना है', बस और मायने निकल आए, की भाई हम तो निठल्ले हैं! अब भाई जैसा आप सोचते हैं, आपके ऊपर है! लेकिन हर व्यक्ति कटाक्ष को अपनी मज़बूरी बता कर पेश करने की कला नही जानता, और मैं भी नहीं जानता! अब भाई समय का अभाव है तो है, नहीं ठहर सकते आप के साथ, आगे जरुरी काम हैं, उन्हें भी करना जरुरी है! अब अगर किसी के पास आपके खाली समय के हिसाब से समय नहीं है, तो कुछ नहीं किया जा सकता! लेकिन आपको समय के अभाव की शुभकामनाएं, आप भी चंद ऐसे लोगों की फेहरिस्त में शुमार हो गए, जिनके पास समय का अभाव है!

मैं कहता हूँ कुछ, और तुम समझते कुछ हो,
मैं लिखता हूँ ख़ुद, तुम क्यूँ लिखते बहुत हो!
मेरा कहना न होगा, जो जवाब न आए तो,
तेरा लिखना न होगा, जो लिखा न पाये तो!
कि शतरंज नही है, यह है जिंदगी मेरे दोस्त!
यहाँ हर बात का जवाब एक चाल नही होती!
समय का ही तो खेल है यह, समझो अब भी,
कि हर फिकरे का जवाब यहाँ मात नही होती!

1 comment:

  1. चिंताएं तो होती हैं। उन्हें उछालने से क्या फायदा। अपने हितों के लिए सजग सब होते हैं उतने ही जितने आप। कुछ अलग हटकर हित कमा लेते हैं कुछ साथ जुडे रहकर। एक और बात हमारे बीच में कोई नहीं है, अगर है तो सिर्फ कुछ गलतियां। साथ बैठने वाले लोगों का क्या दोष जब गलतियां हमने कीं। मैं तो कभी नहीं कहता कि उनके साथ बैठे रहो। टीस तो वही पुरानी पहले दिन वाली है। क्या जरूरत थी सौगातें लौटाने की। क्यों एक बात इतनी बुरी लग गई। वो क्या इतनी हितकर थी कि एक रिश्ते की बलि दे दी जाए। सब ठीक तो था। दूरियां तो आप बढ़ाते चले गए। कुछ झूठ भी बोले। साफ इनकार करने के बजाय बहाने बना दिए। क्यों? खुद को छला हुआ महसूस करने के बाद कहां तक साथ चलता। आप का कद इतना बढ़ गया कि पुराने मीत साथ नहीं दे पाए। या आपने साथ लेकर चलना नहीं चाहा। चौपाल बीच में न घसीटी जाए तो बेहतर। वो मेरा फैसला है और चौपाल कभी नहीं छूटेगी। लोग बदल जाएं पर चौपाल तो यथावत है। अनादि है चलती रहेगी मेरे बाद भी। अलग अलग रूपों में। कभी पांचसितारा तो कभी केवल सर के ऊपर सितारों के बीच। उसे बीच में न लाओ। अपनी गलतियों को ढूंढो, मेरी वो गलतियां कहो जो रिश्ते की बुनियाद को नम कर गईं। इसी में हल है। हम दोनों के बीच समाधान फंसा है। ज़रूरत है ढूंढ कर एक दूसरे के थोबड़े पर चस्पा करने की।

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