February 27, 2010

होली है!

शनिवार के दिन ऑफिस में, कुछ काम ही ऐसा है, कि आना पड़ता है!

बॉस ने पूछा कि, तुम नहीं जा रहे अपने घर, जवाब देते नहीं बना, क्यूंकि दिल चाहता है कुछ, और दिमाग कहता है कुछ, अपने घर-गाँव से अलग एक नयी दुनिया ही बना ली है मैंने... और इस दुनिया में कोई रंग नहीं| रंग तो घर कि होली में है, अफ़सोस कि उसके लिए भी ज्यादा मुखर नहीं हो पाया कभी, लेकिन याद है कि होली कैसी होती है| बचपन में होली कि तैयारियां एक हफ्ते पहले शुरू हो जाती थी, पिताजी से पैसे लेकर रंग कि दूकान से मनपसंद रंग और कुछ नए रंग खरीदे जाते थे और फिर गली-मोहल्ले रंग दिए जाते थे| कपडे गंदे हों इसका बहुतेरा ध्यान रखने पर भी एक-आध छींट बुर्शत्त के किसी कोने पे अपना निशान छोड़ जाते थे, और उसके बाद माताजी के हाथों क्या धुलाई होती थी, बस पूछिये मत| अब वो मार शायद कभी नहीं पड़ेगी...



रंगों से दूर होता चला गया मैं! इस कदर दूर कि अब रंग एक अजीब सी मादकता का पर्याय लगते हैं! कभी जान होगा इस बाजार, समझ नहीं आता| रंग किस दाम पर मिल रहे हैं पता नहीं, मेरी दुनिया के रंग किस बाजार में मिलेंगे यह भी पता नहीं.....

होली का पर्याय है मिलना-जुलना, गाँव-घर के सभी लोगों का एकमस्त हो नाचना गाना और अपनी कुमाउनी संस्कृति के अनुसार झोडों का हिस्सा बनना| मिसरी, आलू के गुटके, घुझिया और भाभियों का दुलार और अमाओं कि झाड... क्या रंग है अपनी होली में! यह रंग किसी बाजार में नहीं मिलेंगे, और इन रंगों को खोज लाने वाले को मनचाहा इनाम|



आज बिरज में होली है रे रसिया...
होली है!

2 comments:

  1. भाभियों की ना पूछो उन्हें तो होली की ख़ुमारी में ससुरे भी देवर नज़र आते हैं। होली के रंग सब एक जैसे ही होते हैं और तुम्हारी इस दुनिया में भी तो तुमने तमाम रिश्ते कमाए हैं। चालीसा मार चुकी मोहल्ले की हर अधेड़ औरत तुम्हारी चाची या आंटी है। पहुंच जाना किसी के भी घर कोई ना कोई तो बैठाएगी यार। वरना भाई एक और भी है...होली में सब जायज़.. निचोड़ देना. दारू पी के... दारू पी के...

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  2. thakur sahab ne jo salah aur jis prakar se dhandhas bandhaya hai vo ek sharabhi he samajha aur bujha sakta hai...condition hamari bhee kuch aisi he hai...nashey me kaun nahi hai mujhe batao zara...holy hai...bura mat maniyo

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