March 4, 2015

पल जो आते हैं, जाते हैं...

पल जो आते हैं, जाते हैं...

तुम फिर सिर्फ क्यों ख्यालों में आते हो?
क्यों सिर्फ रात के उजाले में आते हो?
सुबह होने को है देर बहुत बाकी, 
फिर क्यों कहकहों से मुझे जगाते हो?


तुमने सोचा भी न होगा, है ना?
खुद से बाहर भी, कहीं बस जाओगे तुम...
कहाँ रहते हो तुम?
जो खोये-खोये से सदा रहते हो...


कभी ख्यालों में ही ठहरा के चले से जाते हो,  
फिर कभी चुप से घूम के भी आते हो तुम...
जगाते हो, मुस्काते हो, और फिर चले जाते हो!
और फिर कभी यूँही बस चले भी तो आते हो!


जानोगे किसी रोज, भले ही ना मानो...
तुम्हारे यूँ आने, जाने और फिर चले आने के मध्य...
तुम थोड़ा-थोड़ा करीब ही कहीं रह से जाते हो!
कभी-कभी, कुछ-कुछ किसी पल,
इन पलों में जो आते हैं, जाते हैं, 
तुम मेरे हाँ सिर्फ मेरे ही, मेरे हो से जाते हो!



© टी. सी. के.

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